कृष्ण मोहन सिंह
कृष्ण मोहन सिंह

Director's Message

प्रबन्धक की कलम से....
  स्वतन्त्रता संग्राम की लडाई में मेरे बाबा स्व. अक्षयबर सिंह जी की सक्रिय भूमिका रही है।
महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर सन १९२१ में १६ वर्ष की उम्र में ही स्कूली शिक्षा त्याग करके स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े।
गाँधी जी के असहयोग अन्दोलन, सत्याग्रह में भाग लिया।बाबा राघव दास के जेल जाने के बाद कांग्रेस ने पुरे पुर्वांचल की बाग-डोर उनके हाथ में सौंप दी। सन १९२२ में चौरा चौरी चौरा कांड के संयोजक रहे। चौरा चौरी कांड के बाद गोरखपुर के स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटना "सनहा" सत्याग्रह का संचालन १९२९ में किया। इस सक्रिय कार्य के लिये ०८ माह कारावास व ४०/-रू.अर्थदंड की सजा सुनाई गयी। १९३१-३२ एवं १९४०-४२ में जेल की यात्राएँ की एवं ०३ वर्ष नजर बन्दी के अलावा अर्थदंड के बदले कारावास भोगा। विदेशी कपड़ा एवं सामान,ताड़ी शराब बन्दी तथा नमक आन्दोलन में चुनौतीपूर्ण नेतृत्व किया। अर्थदंड की वसूली में बार-बार घर का सामान नीलामी हुआ और पत्नी-बच्चे कई-कई दिनो तक खुले आकाश के नीचे रहे। इसके अलावा कान्स्प्रेसी केस के नाम से मुकदमा चला जिसमें१८ माह अपने २१ साथियों के साथ तन्हाई में बेड़ियो के साथ रहे। सन १९२२ से अजादी तक कांग्रे्स कमेटियों में प्रधान तथा सभापति रहे तथा जिला कमेटी के मन्त्री व सभापति रहे। जीवन पर्यन्त लोगों में मन्त्री जी के नाम से लोकप्रिय रहे। आजादी के बाद प्रथम बार सन १९७४ में मनोनीत व सन १९५२ से १९६७ तक विधान सभा क्षेत्र पिपराइच से लगातार विधायक रहे। स्वाधिनता के बाद जीवन का आदर्श जनता का हित,देश की उन्नति को उद्देश्य बनाकर इसके लिये अनवरत समर्पित रहे। कई शिक्षण संस्थाओं में आज भी विद्यमान है। आजादी की लड़ाई में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,जवाहर लाल नेहरू,सरदार बल्ल्भ भाई पटेल,राम प्रसाद बिस्मिल सहित महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियो के साथ कार्य किया जिनका देहान्त सन १९८९ में हुआ उस समय में पुरे प्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियो के अध्यक्ष रहे, जिनके जीवन कल से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।उनके नाम से गोरखपुर शहर का सबसे मुख्य मार्ग पार्क रोड अब "अक्षयबर सिंह मार्ग" के नाम से जाना जाता है।
              सामजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े नटवां जंगल क्षेत्र की भौगोलिक सरचना भी इसके पिछड़ेपन में अभिशाप बनी रही। ऐसे क्षेत्र में शिक्षा एक समस्या ही रही। उच्च शिक्षा कि कल्पना करने का साहस जुटा पाना कठिन था।उच्च शिक्षा के अभाव में छात्रों को भटकते देखकर उन्हें सदैव दु:ख होता रहा अपनी इस इच्छा को मूर्त रुप देने के लिए भटहट-पनियरा मार्ग पर नटवाँ जंगल में १९८० में प्राथमिक विद्यालय स्थापित किया जो उनके जिवन काल में ही जूनियर हाई स्कूल तक पहुँच गया। उनकी अन्तिम इच्छा थी कि इस प्रांगण में एक डिग्री कालेज की स्थापना हो उनका प्रयास चल ही रहा था कि १९८९ में उनका देहावसान हो गया।
            उनके स्वर्गवास हो जाने के पश्चात उनके प्रियजनो एवं उनके पुत्र के संघर्षमय प्रयासों से पुज्यनीय स्व० अक्षयबर सिंह जी के पूर्ण स्मृति में अक्षयबर सिंह मेमोरियल डिग्री कालेज की स्थापना का स्वप्न साकार करने में सफ़लता मिली।
उक्त महाविद्यालय के प्रांगण में स्व० अक्षयबर सिंह की प्रतिमा स्थपित की गयी जिसका उद्घाटन दिनांक ११ मई, २०१५ को महामहिम माननीय़ श्री राम नाइक, राज्यपाल उ.प्र. के द्वारा किया गया।
सीमित संसाधनों एवं अदम्य उत्साह के बल पर २० अगस्त १९९९ में इस विद्यालय को स्नातक की शिक्षा देने हेतु ७ विषयों के साथ मान्यता प्राप्त हुआ। ११ अक्टूबर १९९९ में ७ विषयों अंग्रेजी, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, शिक्षा शास्त्र, प्रचीन इतिहास, समाज शास्त्र, एवं हिन्दी में शिक्षण कार्य प्रारम्भ हुआ।
वर्ष २००५ में प्रबन्ध समिति एवं महाविद्यालय परिवार ने इस महाविद्यालय स्नातकोत्तर स्तर की¬शिक्षा (हिन्दी तथा समाजशास्त्र, विषय में) प्रदान करने का मन बनाया और दृण संकल्प करके इस योजना को कार्य रुप देना शुरु किया जिसके परिणामस्वरुप वर्ष २००६-०७ से महाविद्यालय में हिन्दी तथा समाजशास्त्र विषयों में द्विवर्षीय स्नातकोत्तर शिक्षण प्रारम्भ हो गया।
प्रबन्ध समिति ने प्राचार्य के रुप में श्री विश्वनाथ पाण्डेय जी (अवकाश प्राप्त) को नियुक्त किया। श्री पाण्डेय जी ने बड़ी कुशलता के साथ अपना दायित्व पूर्ण जो उनकी अनुभवपूर्णता का प्रमाण था। समयान्तराल प्रबन्ध समिति ने डॉ० रामाज्ञा सिंह प्रवक्ता हिन्दी को १ जुलाई २००३ को प्राचार्य नियुक्त किया। दिनांक १६.१०.०४ को दी०द०उ० गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति ने डॉ० रामाज्ञा सिंह के नाम से प्राचार्य के रुप में अनुमोदन प्रदान किया। आज डॉ० सिंह के निर्देशन में महाविद्यालय में नियमित शिक्षण व्यवस्था, स्वच्छ प्रशासन, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, पिछ्ड़े वर्ग तथा सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए छात्रवृति की व्यवस्था, महाविद्यालय को परीक्षा केन्द्र बनवाकर शान्तिपूर्ण ढ़ंग से नकल विहिन परीक्षा कराकर महाविद्यालय को गौरवान्वित किया। सत्र २००६-०७ से महाविद्यालय में स्नातकोत्तर द्विवर्षीय (हिन्दी तथा समाजशास्त्र, विषय में) कक्षाओं के संचालन की शुरुआत हुई तथा सत्र २०१०-११ से महाविद्यालय में बी०एड० कक्षाओं का शुभारम्भ हुआ।
गत कई वर्षो से शतप्रतिशत परीक्षाफ़ल के साथ सुचारु रुप से पठन-पाठन चल रहा है। अभी इतना ही पर्याप्त नहीं है। हमारे कदम आगे की ओर अनुदिन अग्रसर है।
आय के सीमित संसाधनों के बावजूद उत्साह बल पर महाविद्यालय में नये-नये व्याख्यान कक्ष का निर्मित किये जाते रहें है। २६.१०.२००१ को विजयादशमी के दिन स्व० हरिहर सिंह स्मृति व्याख्यान कक्ष का उद्घाटन मा० देवेन्द्र प्रताप सिंह जी, विधान परिषद सदस्य (उत्तर प्रदेश) के कर कमलों से सम्पन्न हुआ।
स्थानीय विधायक श्री ज्ञानेन्द्र जी अपने विधायक निधि से सन २००४ में कार्यालय कक्ष का निर्माण कराया है। महाविद्यालय पूर्णतः प्राकृतिक परिवेश में स्थित है। प्रागंण नवपल्लवधरी वृक्ष तथा पुष्पों से सुशोभित है। महाविद्यालय में सुविधा की दृष्टी से कक्ष संख्या व श्रृंखला का नामकरण भी किया गया है। जिसमें प्राचार्य कक्ष, कार्यालय, शिक्षक कक्ष, व्याख्यान कक्ष आदि।
महाविद्यालय यशस्वी प्रबन्धक श्री अयोध्या सिंह के देख-रेख निर्देशन में उत्तरोत्तर विकास कर रहा था। कि अचानक अस्वस्थ होने तथा बीमार पड़ने पर उन्हें उपचार हेतु पी०जी०आई० लखनऊ में भर्ती कराया गया। जहाँ वह बिमारी से जूझते हुये १९ नवम्बर २०१० को रात्रि ९:३० बजे के लगभग हृद्य गति रुकने के कारण उनकी मृत्य़ु हो गई। श्री अयोध्या सिंह के आकस्मिक मृत्य़ु के उपरान्त महाविद्यालय परिवार ने प्रबन्धक पद का कार्यभार मुझे सौपा।
                                            कृष्ण मोहन सिंह "बब्लु"
                                                  प्रबन्धक                                                                


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